मुकरीयां
तेरे बिन सावन है सूना।
दिन रातों से सूना दूना।
भोर मचाए झूठा शोर।
वो सखी साजन? नहीं सखी घटा घनघोर।
रात में दिन का भरा उजाला।
आगे सब कुछ गहरा काला।
बिन उसके कुछ नहीं भावन।
के सखी साजन ?नहीं रे, सूखा सावन।
सुन,सुन कान पक गए ताना।
सास,ननद का अब भी जमाना।
फिर मैंने भी ली ठान लड़ाई।
सखी सासु से?नहीं रे लिखाई-पढ़ाई।
तन मेरा सखी दुबला थोड़ा।
मन में साहस खूब बटोरा।
दुम दबाकर भागा,दौड़ा।
के सखी कुक्कुर? नहीं सखी गुंडा।
डरा,डरा अधमरा कर दिया।
मन में सारा भय भी भर दिया।
दूर किया आ सारा दिक्कत।
के सखी छोरा? नहीं सखि हिम्मत।
कितना मैंने सखी किया निहोरा।
वह पागल पिघला नहीं थोड़ा।
लगा फिर दिया होश ठिकाने।
सखी लगी झगड़ने? नहीं, लगी मायके जाने।