मुकरियां
उसने अंग अंग महकाया
उससे ही खिल जाती काया
सफाई के रखे लाखों गुन
ऐ सखि साजन, नहिं सखि साबुन
बातों से सदा करता वार
हार कर भी नहिं माने हार
करता है वह अक्सर अपील
ऐ सखि साजन, नहिं वकील
गिरने पर है मुझे उठाया
स्वस्थ करे वह मेरी काया
पीड़ा मेरी सदा मिटाई
ऐ सखि साजन, नहीं दवाई
पल में सर्दी दूर भगाए
गर्मी का एहसास कराए
कांपता है जब कोई थर-थर
ऐ सखि साजन, नहिं सखि हीटर
व्याकुल मन को खूब सुहाता
अधरों से मेरे लग जाता
बुझाता है वह मेरी प्यास
ऐ सखि साजन, नहिं सखि गिलास