मुकरियां
समय का पालन यह सिखाए
रोज सवेरे मुझे जगाए
हरदम उसकी जरूरत पड़ी
ऐ सखि साजन, नहीं सखि घड़ी
बाहर उजला भीतर रीठा
लगता है वह कितना मीठा
काम सभी बातों से लेता
ऐ सखि साजन, नहिं सखि नेता
सच्चाई का पाठ पढ़ाया
अंधकार को दूर भगाया
उसके दम से ऊंचा मस्तक
ऐ सखि साजन, नहिं सखि शिक्षक
सबकी नजर में बसी है रंगत
सिर चढ़कर बोले उसकी लत
खुले आंख तो याद वह आय
ऐ सखि साजन, नहीं सखि चाय
उर पर रखती असीमित भार
पूरा न हो उसका उपकार
जनम जनम का उससे नाता
ऐ सखि साजन, नहीं सखि माता