मुकम्मल फिर
मुकम्मल फिर कभी हम ख़्वाब की ताबीर कर लेंगे
अक़ीदत की हम अपनी फिर हसीं तस्वीर कर लेंगे
अभी है वक़्त हम मिल कर हिफ़ाज़त मुल्क की कर लें
रहे महफ़ूज़ तो फिर से बड़ी तक़रीर कर लेंगे
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’
मुकम्मल फिर कभी हम ख़्वाब की ताबीर कर लेंगे
अक़ीदत की हम अपनी फिर हसीं तस्वीर कर लेंगे
अभी है वक़्त हम मिल कर हिफ़ाज़त मुल्क की कर लें
रहे महफ़ूज़ तो फिर से बड़ी तक़रीर कर लेंगे
©️ शैलेन्द्र ‘असीम’