मुकद्दर
संघर्षों की आंधियों में चलकर,
हम मंजिल तक पहुंच पाते हैं,
अपना मुकद्दर अपनी मेहनत से खुद बनाते हैं,
दुनिया में आकर हम सब कितने ख्बाव सजाते हैं,
तुफानों से डर,ना किसी बेगानो से
लक्ष्य की डोर को मजबूत कस कर पकड़
अपने ख्वाब को को हकीकत बनाते हैं,
एक विश्वासके साथ उम्मीद के खेत में आस के बीच बो आते हैं,
हम अपना मुकद्दर अपनी मेहनत से खुद बनाते हैं।
– सीमा गुप्ता, अलवर