मुकद्दर ने
मेरा सोया हुआ अरमां जगाया है मुक़द्दर ने।
कहां लाकर के फिर उनसे मिलाया है मुक़द्दर ने।
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तुम्हारा भी ना हो पाया,जो अपना भी ना हो पाया।
न जाने किस तरह से आज़माया है मुक़द्दर ने।
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उदासी ग़म की छाई थी शबे तारीक में लेकिन।
तुम्हारे प्यार का दीपक जलाया है मुक़द्दर ने।
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बहुत दुश्वार राहों से गुज़र जाता है मेहनतकश।
कि तपती धूप में चलना सिखाया है मुक़द्दर ने।
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बहुत दुश्वार थीं राहें मगर अहसान है इतना –
कि तपती धूप में चलना सिखाया है मुक़द्दर ने।
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बहुत उम्मीद थी मुझको तुम्हारे इश्क में लेकिन।
मोहब्बत में मगर कितना सताया है मुकद्दर ने।
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