मुक्ती
इतना ही समज आ रहा था मुझे
आज मैं शांती से लेटी हुई थी,
जिंदगी ने किया छलावा, मरने से
मुक्ती मिल गयी थी|
सब बहोत प्रशंसा कर रहे थे,
अच्छा बोल रहे थे मेरे बारे मैं,
शायद सब जान गए थे,मेरे जाने के बाद,
कि में कैसी थी|
पहले कभी न बोलने वाले,
आज मेरे लिए इकठ्ठा हुए थे,
मदत माँगने पर भी, मदत न करनेवाले,
आज मेरा बोझ चार कंधो पर उठाए सवार थे|
हमेशा ठुकराने वाले लोक आज पैर छु रहे थे,
सब एक दुसरें को संभाल रहें थे, पर रो रहे थे,
बुरा तो लग रहा था, कुछ ख्वाईशे अधुरी रह गयी थी,
लेकीन जिन्दगी ने किया छलावा, मरने से
मुक्ती मिल गयी थी…. मुक्ती मिल गयी थी…..