“मीत मेरे” गीतिका
प्रीति मेरी मीत तेरे नाम है
सुबह तुम से ही तुम्हीं से शाम है
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मैं विरहिनी गीत दुख के गा रही
याद में जलना यही इक काम है
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नित नए उपनाम मुझको मिल रहे
ये कहानी जानता सब ग्राम है
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कह रहे थे देखकर हमको सभी
एक राधा दूसरा घनश्याम है।
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साथ पाया जो तुम्हारा जी उठी
बिन तुम्हारे जिंदगी विराम है
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प्रीति तेरी सौ जनम तक चाहिए
मिलन तुमसे पुण्य का परिणाम है
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तुम चले आओ खिले मन वाटिका
बाट तेरी तक रही हर याम है।।।।
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‘अंकिता’ तकती तुम्हें है एकटक
शांत छवि अनुपम बङी अभिराम है।।