मीत झूठे स्वप्न टूटे
मीत झूठे स्वप्न टूटे आज जाना!
चाहता था दिल जिसे वो यार बिछड़ा
क्या कमी थी जो कि मेरा प्यार बिछड़ा
किस डगर को चल दिये वो बिन बताये
इस तरह मेरा सुखी संसार बिछड़ा
छूटना था औ’ बचा क्या पास मेरे
ज़िंदगी का अब कहाँ कोई ठिकाना।
मीत झूठे स्वप्न टूटे आज जाना!
भूल जाना है कठिन मेरे लिए पर
हो गई है रात मेरी हिज़्र से तर
तब विमुख ही रह लिए होते किनारे
रुक गये थे क्यों नहीं वो और क्षण भर
दीप सारे बुझ गये अब व्यर्थ जीवन
साँझ बोली बंद कर उन को मनाना।
मीत झूठे स्वप्न टूटे आज जाना!
सच यही था मीत अपना था पराया
कौन सुधि ले कर गई थी धूप छाया
सोच कर हूँ मैं अचंभित ओ पपीहा
कौन आँगन की हँसी आकर चुराया
पी गई है विष विरह का आज जोगन
अश्रु-धारा बह रही देखें ज़माना।
मीत झूठे स्वप्न टूटे आज जाना!
उस मृग से, मेघ से माँगा न जल-थल
जो युगों से है बहाता नीर कल-कल
आज सुन मेरी कहानी रो पड़ा नभ
मैं प्रतीक्षा कर रही हूँ व्यर्थ पल-पल
आह, कैसे इस व्यथा को मैं सँभालूँ
किंतु उन को है न संभव भूल पाना।
मीत झूठे स्वप्न टूटे आज जाना!