मीडिया का खेल
अख़बार, रेडियो, टेलीविजन और सिनेमा कभी क्रांति के वाहक नहीं रहे। हर दौर में वे न्यस्त स्वार्थों के हाथों में खेलते रहे। क्या कभी सुना है कि इन्होंने जीते जी भगतसिंह, अंबेडकर और ओशो जैसे जीनियसों का साथ दिया है?
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