*मीठी सी तपिश*
सर्दियों के दिन
बादलों की ओट
में से निकलती वो
मीठी सी तपिश
तन को सेकती
हल्के से कहती
कितनी मीठी है
है ये धूप ।
मानों माँ के नरम-नरम हाथों
का मीठा सा स्पर्श
तन को सहलाता
सूर्य की किरणों का तेज
फिर कहीं से आता ठण्डी हवा का
झोंका तेज ,तन को गला देने वाला वेग
उस पर सुनहरा सूर्य का तेज
कहता फिक्र ना कर
मैं सूर्य अनन्त धरती पर
मुझसे ही जीवन
सूर्य बिन धरती हो जाएगी
प्राणिविहीन।