मीठी-मीठी माँ / (नवगीत)
घी-शक्कर के
कट्टू जैसी
मीठी-मीठी माँ ।
पौ फटने के
पहले उठती,
चूल्हे पर
रोटी-सी सिकती ।
मैले बासन पर
कूची-सी
घिसती-घिसती माँ ।
मुन्ना-मुन्नी को
नहलाती,
बड़े चाव से
टिफिन लगाती ।
पापड़ की
कोमलता जैसी
तीखी-तीखी माँ ।
भीतर रोती
बाहर हँसती,
फूलों-सी
काँटों में खिलती ।
सिलबट्टे पर
चटनी जैसी
घिसती-घिसती माँ ।
उलझी बातों
को सुलझाती,
रोज़ प्यार का
दीप जलाती ।
संन्यासी के
जीवन जैसी
सुलझी-सुलझी माँ ।
घी-शक्कर के
कट्टू जैसी
मीठी-मीठी माँ ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।
मो.- 8463884927