मिज़ाज ~~
मिज़ाज बदलता है उनका..बदल जाने दो,
क्यूँ हम उनकी बातों का..हर दम हिसाब रखें,
मोहब्बत है कहकर रुलाते है रोज़,
मुस्कुराने को अब हम कितने नक़ाब रखें..
जलता है दिल रूह ख़ाक हो गयी है..
तेरे इन ज़ुल्मों का अब क्या इस्बात रखें…
जला दी है मैंने हर किताब इश्क़ की,
थे सहेजे हुए जिसमें तेरे गुलाब रखें…
◆◆©ऋषि सिंह “गूंज”