मिसेज कप को मानो लकवा मार गयी !
जब से सरकार ने रेलवे प्लेटफार्म अथवा रेलवे कैंपस में अवस्थित टी-स्टॉल को मिट्टी के कुल्हड़ों में चाय व कॉफ़ी परोसने को लेकर घोषणा की है, तब से सुंदरता की मिसाल बन चुकी चायनीज़ कपों ने इन भद्दे कुल्हड़ों को येन-केन-प्रकारेण बेइज़्ज़त करने को लेकर हर मौके को बेकार जाने नहीं दे रही. तभी तो शहर में रेलवे जंक्शन के निकट ही चायनीज़ कपों के एक शोरूम के पास दो साल पहले भोलू की जो चाय दुकान खुली थी, वहाँ ऐसी ही रंग-बिरंगी कपों से चाय-कॉफी चुस्कते थे लोग ! इस बहाने शोरूम से ये कपें भी बहुतायत मात्रा में बिकने लगी थी. सरकार की इस घोषणा के बाद भोलू ने भी मिट्टी के कुल्हड़ों को भी दुकान में रखने लगे. कुल्हड़ से चाय का स्वाद सोहनी लगती है, जिससे कुल्हड़ की मांग बढ़ गयी. एक दिन किसी कारण भोलू की दुकान बंद थी, तब कुम्हार ने कुल्हड़ों की टोकरी को शोरूम के अंदर ही रख दिया और रात में शोरूम के अंदर गुस्से से फनफनाती सुंदर चायनीज़ कपों में से एक ने दुत्कारती हुई वहाँ रखी गई उन कुल्हड़ों से पिल पड़ी….
-छि: ! तुझे देखने से ही घिन्न आती है, किंतु ये आदमी फिर भी क्यों तुझे ओठों से लगाये रहते हैं ? लेकिन यह क्या, ये आदमी तो झटके से तुमसे संबंध-विच्छेद कर तुझे अविलंब चकनाचूर भी तो कर डालते हैं !
इतना सुन उन कुल्हड़ों में से एक ने बिल्कुल शांत स्वर में उस चायनीज़ कप से कहा-
बहन, मैं भले ही कुरूप हूँ, किंतु तुम्हारी तरह बेवफ़ा नहीं ! तुम जैसी गोरी-चिट्टी व सुंदरता की मल्लिका किसी एक प्रेमी के प्रति समर्पित नहीं रहती हो, क्योंकि तुम्हें तो कई ओठ रसपान के लिए चाहिए, परंतु मैं जिस प्रेमी को ओठ लगा लेती हूँ यानी उसे ‘किस’ कर लेती हूँ, उसके प्रति सम्पूर्ण प्रेम को अर्पित कर अपनी ज़िंदगी का भेंट चढ़ा देती हूँ, ताकि उक्त प्रेमी के प्रति वफ़ादर बनी रहूँ…..
— मिस कुल्हड़ के प्रत्युत्तर से मिसेज़ कप को तो मानो लकवा मार गयी, क्योंकि यह वार्त्तालाप अब बंद हो चुकी थी.