“मिल ही जाएगा”
छेद न रहा कश्ती में तो
किनारा मिल ही जाएगा।
भेद न रहा अपनो में तो
सहारा मिल ही जाएगा।
तो क्या हुआ जो
पहली दफा धोखा हुआ,
ये दुनिया बहुत बड़ी हैं,
कोई दोबारा मिल ही जाएगा।
हो जाने दो उसे किसी और के,
तुम्हें तुम्हारा मिल ही जाएगा।
छेद न रहा कश्ती में तो
किनारा मिल ही जाएगा।
ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)