मिल जाये इस जगत में
मिल जाये इस जगत में
पुर्ण ब्रम्ह की प्राप्ति
मृगतृष्णा को त्याग दें
तब मिलेगी सुख शांति
जहां न मिले सुख शांति
वहां न पहुंचे लोग
मृगतृष्णा माया नगरी में
करते हैं सब शोक
सत्संग स्थल में सुख-शांति
सद्गुरु ब्रह्म के रूप
सच्चिदानंद घन है वासुदेव
अखिल ब्रम्ह स्वरूप
सृष्टि जगत के पालनहार
मनमोहन घनश्याम
सांख्य योग अरू समर्पण
सुख शांति सीताराम
कर्म करो, कर्ता न बनो
अभिमान देऊं त्याग
सुख शांति रहे जीवन में
जप लीजिए सीताराम
जो कुछ है सब श्याम का
सौंप दीजिए आप
फल की इच्छा आसक्ति का
कर दीजियेगा त्याग
सिद्धि असिद्धि समत्व रख
स्वच्छ रख विचार
तन मन वाणी अरू कर्म से
जपन कर सीताराम
तन मन समर्पण कर प्रभु को
अविरल जपे हरिनाम
कर्म योग सब साधना यही है
सुख शांति देंगें श्रीराम
दाल अरू चांवल ढुंढत फिरे
कहां देंगे मनिहार
श्रृंगार समान का है बिक्रेता
रूप सौन्दर्य श्रृंगार
छल कपट है हटरी,जगत
माया नगर बाजार
ईर्ष्या द्वेष माया जाल बिछा
मिलता है ब्यवहार
ऐसी रचना है मृत्यु लोक
स्वारथ का संसार
अविरल धारा प्रवाह में
जप ले सीताराम
विनित
डां विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग