“ मिलिटरी ट्रैनिंग से कोई अछूता नहीं रहता “
( संस्मरण सीनियर काडर ,ऑफिसर ट्रैनिंग ,लखनऊ )“
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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आर्म्स सैनिक इनफेंटरी ,सिग्नलस,आरमैड ,आर्टेलरी और इंजीनियर को कहे जाते हैं जो युद्ध के समय सीमाओं पर आगे रहते हैं ! सर्विसेज़ सैनिक सहायक कार्य करती हैं ! आर्मी सर्विस कॉर्पस ,इलेक्ट्रिकल मेकेनिकल कॉर्पस ,आर्मी पोस्टल कॉर्पस ,आर्मी एजुकेशन कॉर्पस ,आर्मी वेटनरी कॉर्पस ,आर्मी मेडिकल कॉर्पस और भी सहायक कॉर्पस भारतीय सेना में महजूद हैं ! आर्म्स सैनिकों की मिलिटरी ट्रैनिंग चलती रहती है ! बैसे सर्विसेज़ सैनिक भी मिलिटरी प्रशिक्षण से अछूते नहीं रहते और इनकी ट्रैनिंग भी अपने स्तर पर होती रहती है !
आर्मी मेडिकल कॉर्पस सैनिकों की बेसिक ट्रैनिंग लखनऊ में छः महीने के होती है, फिर ट्रैड ट्रैनिंग और फिर अस्पताल ट्रैनिंग ! हरेक प्रमोशन पाने के लिए स्थानीय ट्रैनिंग प्रक्रिया से हरेक सैनिकों को गूजरनी पड़ती है ! कनिष्ठ पधाधिकारी ( जूनियर कॉमीशन ऑफिसर ) बनने के लिए सारे भारत से लखनऊ में आर्मी मेडिकल कॉर्पस सेंटर बुलाए जाते हैं ! वहाँ पुनः मिलिटरी ट्रैनिंग प्रारंभ हो जाती है !
ठीक 20 सालों के बाद मुझे भी बुलाया गया ! उन दिनों मैं जम्मू सतवारी मिलिटरी अस्पताल के कान, नाक और गला विभाग में कार्यरत था ! यह सिनीऑर काडर दिनांक 12 सितंबर 1992 से 21 नवंबर 1992 तक चलेगा ! पूरी तैयारी के बाद हम दो लोग 10 सितंबर 1992 को लखनऊ रवाना हो चले ! 11 तारीख को भारत के विभिन्य मिलिटरी अस्पताल ,फील्ड एंबुलेंस और छोटे छोटे मेडिकल यूनिट से लोग पहुँचने लगे थे !
आज यह सुनहरा अवसर मिल ही गया जब हम 20 वर्षों के बिछुड़े लोगों से फिर मिल बैठे !
अगले दिन मिलिटरी ट्रैनिंग प्रारंभ हो गयी ! प्रातः 3 बजे उठना ,चाय पीना ,दाढ़ी बनाना ,ब्रश करना और लंबी कतारें टॉइलेट के लिए लगाना ! अपने – अपने सराउनडींग को झाड़ू से साफ करना ,अपने बिस्तर को एक दूसरे से सजा कर रखना ! एक लॉकर हम लोगों को मिला था ! उसी में सब समान रखा जाता था ! और वे खुले रखे जाते थे , ताकि उसका भी निरक्षण हो सके ! तकरीबन 250 लोगों के बिस्तर और चारपाई एक लाइन से लगाई जाती थी ! देखने में नई दिल्ली राजपथ का परैड हो !
फिर शुरू हमारा फाल इन ,ड्रेस का निरीक्षण और रोल कॉल ! अंधेरे में मार्च करके कोत जाना वहाँ से राइफल लाना ! ग्राउन्ड में सजाना ! कभी पी 0 टी 0 ,कभी डब्लू 0 टी 0 ,कभी परैड इत्यादि ! हरेक काम दौड़ चाल में होता था ! उन दिनों हम लोगों का क्लास ग्राउन्ड में ही हुआ करता था ! जगह- जगह मिट्टी के थड़े बनाए गए थे ! उसी पर बैठकर हम लोगों का क्लास होता था ! मिलिटरी ट्रैनिंग से इतने थक जाते थे कि थड़े पर बैठते ही नींद लग जाती थी ! कभी कभी सजा भी मिलती थी !
ठीक 12 बजे राइफल एक टोली मार्च करके कोत राइफल जमा कराने जाती थी ! खाना खाते 2 बज जाते थे ! बस 2.30 में फिर फाल इन ! ट्रैनिंग सेंटर को खूबसूरत बनाने के लिए हमें शाम 05 बजे तक काम करना पड़ता था ! 2 घण्टे हमको मिलते थे ! खाना खाइए और रोल कॉल के लिए तैयार हो जाइए ! फिर रात को इन्डविजुआल प्रैक्टिस ! रात के 8 बजे से 09 बजे तक जो हमने ग्राउन्ड में सीखा उसे अपनी आवाज में प्रैक्टिस करना पड़ता था !
दो महीने में हम स्मार्ट सैनिक बन गए ! शरीर का बजन आधा हो गया ! और हम एक साथ पास करके अंतिम दिन सबके साथ बैठ कर खाना खाया ! सबसे विदा ली और अपने अपने यूनिट चले गए !
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखण्ड
भारत
22.05.2022.