मिलन
दमक रही माथे की बिंदिया
चमके चन्दा ज्यों लगे गगन।
करके सोलह श्रृंगार कामिनी
मन ही मन में हो रही मगन।
धरती सी वह सहनशक्ति ले
जीवन में खुशियां है भरती।
सबके हित डोले निशि दिन
करुणानिधि दुख को हरती।
प्रियहित करे जतन मृगनयनी
लगी मिलन की मन में लगन।
आशीर्वाद है वह ईश्वर का
जगजननी वह कहलाती है।
चन्दन लेप सदृश मृदु वाणी
मन को वह बहलाती है।
तपते मन को जल के जैसे
पल में दूर हो क्रोध अगन।
मनमोहक सी सूरत अनुपम
श्रृंगार किए सोलह जिसपर।
दमके मुखड़ा चन्दा जैसे
सिन्दूर की लाली है तिसपर।
करके सोलह श्रृंगार कामिनी
मन ही मन में हो रही मगन।
डॉ सरला सिंह स्निग्धा
दिल्ली