मिलन की शाम आयी है ।
बड़ी रौनक सज़ायी है,
मिलन की शाम आयी है ।
सुबह से आस सविता ने,
घड़ी हर पल जगायी है ।
यही इक पल बिताने को,
मिलें जब यार दीवाने ।
निशाकर ने तड़पकर के,
लगे दुनिया भुलायी है ।
दिवाकर बिंब सागर में,
उमंगें प्रीत की झलकें ।
लहर बन फैलतीं मुँख पर,
लगें चंदा की’ हों अलकें ।
पवन रुक देखता छुपकर,
कहे पुष्पो विहँसना मत ।
पुरातन प्रेम सब देखें,
झपकना भूलतीं पलकें ।
रहे अब यादकर वो पल,
परस्पर नैन टकराए ।
कभी तुमको हया आए,
कभी हमको हया आए ।
न पूछो यार उस पल का,
झपकते ही पलक बीता ।
यही बस आरज़ू दिल में,
कि फिर से शाम आ जाए ।
दीपक चौबे ‘अंजान’