मिलने को तुमसे
मिलने को तुमसे……
काजल की बन कोर प्रिये,
हम तुमसे मिलने आयेंगे।
जीवन पथ पर चलते-चलते
दो मोड़ कहीं चल पाएं हम,
कर्मशील इस पथ पर बढ़ते ,
ओझल गर हो जाएं हम
फिर दूर क्षितिज पर निर्निमेष
मेरे प्रीतम ,साजन मेरे
आलोक दामिनी का बनकर
हम राह तुम्हें दिखलाएंगे।
काजल की बन कोर प्रिये,
हम तुमसे मिलने आयेंगे।
सम पर जब जीवन होगा
मंथर गति , हलाहल होगा
छवि मय होगा पश्चिम का व्योम
पल पल चिर प्रतीक्षारत होगा
ऐसे में जब मन की वेदना
होगी जब सागर से गहरी
जीवन की बहती, सरिता में
हम शीतलता बन आएंगे
काजल की बन कोर प्रिय,
हम तुमसे मिलने आयेंगे।
गर संध्या जीवन में तेरे होगी
परछाई भी मुंह फेरे होगी
संगी जो मन भवन थे
घाव अथाह दे जायेंगे
फिर से शाखा उन्नत होगी
फिर से पल्लव आयेंगे
जीवन नहीं मरा करता है
बार बार कह जाएंगे
जब नक्षत्र काल चक्र वश होंगे
तपती में चलना होगा
दूबा पर फिर ओस टिका कर,
हम,पग शीतल कर जाएंगे
काजल की बन कोर प्रिय
हम तुमसे मिलने आयेंगे।
नियति का निर्धारित खेल
पात्र उसी के बन जाएंगे
दूर क्षितिज के मधुर गीत
होठों पर सज जाएंगे
चाहु दिशी नक्षत्र मंथन होगा
आलोडित फिर होंगी दिशाएं
उत्ताल तरंगें सागर होंगी
तट रत्नों से भर जाएंगे
मनु भावों का मानस होगा
देवतुल्य सुशासन होगा
जगत हित हम तेरा आंचल
आशीषों से भर जायेंगे
काजल की बन कोर प्रिय
हम तुमसे मिलने आयेंगे