मिलने का करार
*******मिलने का करार कर******
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हूँ याद में रहा रोता ऐतबार कर,
दिल से कभी हमें थोड़ा प्यार कर।
नजरें मिली,हसीं दिल ये धड़कने लगा,
दीवानगी भरे लम्हों का इंतजार कर।
फूलों से महकते रहते हो सदैव तुम,
महकों से गर्म,मन का बाजार,यार कर।
मिलते सदा रहो जब तक हैं जहाँ रहे,
संसार जीत जाओगे आखिर हार कर।
डाली सदा रही झुकती फल लदी हुई,
काँटों भरी डगर है सपने निसार कर।
कब, कौन कहे मनसीरत कहाँ मिले,
मिलना कहीं अगर हो,कोई करार कर।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)