मिथ्या सत्य (कविता)
सत्य और मिथ्या दो है भाई,
दोनों में थी हुई लड़ाई ।
साथ कभी ना रह सकते,
क्योंकि दोनों की सोच अलग थी।
कभी एक आगे बढ़ जाता,
और दूसरा रह जाता पीछे।
ऐसा लगता है कि,
मिथ्या का ही है जमाना।
लेकिन सत्य तो सत्य है,
वह कभी नहीं घबराता।
सत्य सुनने की हिम्मत नहीं,
अब मिथ्या सबको है भाता ।
मिथ्या सबको प्यारा लगता,
सत्य नहीं है सुहाता ।
सौ-सौ मिथ्या लोग बोलते,
और सत्य है छुप जाता ।
लोग उन्ही की है पूजा करते,
जो मिथ्या ही हैं बकते ।
लेकिन सत्य तो सत्य है,
वह कभी नहीं घबराता ।
मिथ्या की जब पोल खुल जाती,
तब सत्य स्वयं आगे आ जाता।