मिथिला मे बिलुप्त भेल जा रहल भांट/भैंट(घूमक्कर वाचक)
मिथिला मे बिलुप्त भेल जा रहल भांट/भैंट(घूमक्कर वाचक)
अहूं कहब ग ने जे बलू कारीगर भैंट जेका किए बड़बड़ाइए हइ.? अहां सुनियौ ने जे ओइ बड़बड़ि मे कते काजक गप होइ छै आ लोक के रमनगरो लगै छै? भांट हमरा जनतबे बुढ़ पुरान के मुँहे सुनल जे हइ एना किए भैंट जेका बजैत रहै छैं. ताबे दोसर गोटे बाजल जे उ भैंट बजै की छै से सुनीयै ने?
मिथिला मे भैंट सब गामे गाम घूमि के लोक सब लक मनोरंजनात्मक रूप मे बजै गबै छलै. जै मे गाम लोक के खिदहांस, बड़ाई, उकटा पैंची, छल कपट, बैमानी शैतानी, झगड़ा सलाह, आदि के वर्णन उ फकड़ा रूपे बाजि,कहि,गाबि के करैत रहै.
भांटि के घूमक्कर वाचक सेहो कहि सकब. ओकर मुख्य काज रहै गामे गाम जाके लोक के दूरे दरब्बजे जा के वाचक लोक शैली मे मनोरंजन करब. आ लोक तेकरा बदला मे भैंट के धान चाउर, रूपैया, चीज बौस जेकरा जे जुड़ै से दै. अहि स भैंट के गुजर बसर होइत रहै.
भैंट अपना वाचक प्रस्तुति मे समाजिक बेबस्था बैमानी शैतानी नीक बेजाए पर बेस कटाक्ष करै आ हंसि गाबि के तेना जे लोक के अनसोंहातो नै लगै..
भैंटक कहल फकड़ा…
कारी मुँह मे उज्जर दांत देखलों
उज्जर मुँह मे कारी दांत देखलों
धन रहैतो खाइ लै औनी पथारी देखलों
बाबूए सीरे खा बमफलाट छौंड़ा देखलो
बुढ़बा के केकरो स पटरी खाइत ने देखलो
बज्र कोढ़िया के दूरा सर कुटमार ने देखलो
अपने मे लड़ै जाइए दियादी मिलान ने देखलों
उनटे भैंटे के गरिअबैत फलां बाबू के देखलों
सर समाज लै काज करैत चिंला बाबू के देखलों
अनके भरोसे बैसल रहैए बाबूू के देखलौं
साउस पुतौह के झगड़ा मे आगि लगाएब टोलबैया के देखलों
झगड़ा भेल पंचैति काल पंच बाबू के नीपत्ता देखलों
(इ फकड़ा सब बुढ़ पुरान क मुँहे सुनल.. जे कहांदिनु हमरो गाम मंगरौना मे (भरौड़ा) गोनू झा के गाम स भैंट सब अबै आ फकड़ा बचै इ सब कहै)
फकड़ा स्पष्टीकरण भ रहल जे ओ भैंट सब समाजक सब स्वरूप के देखार चिनहार लोक शैली फकड़ा रूपे क के लोक के मनोरंजन करै. तकरा बाद लोक ओकरा जे जुरै से दै आ ओकर आजीविका चलै.
पमरीया जेका भैंटो सबके गाम आ इलाका बांटल रहै आ सब अपना इलाका मे घूमी घूमी बिशुद्ध रूपे लोकक मनोरंजन करै. अपना मे मिलानी बाद भैंट सब एक दोसरा के इलाका मे सेहो जाइत रहै.
आब भैंट किनसाइते कतौह देखबा मे अबै छै. जेना उ भैंट सब मिथिला स बिलुप्त भेल जा रहल. ओइ भैंट सब के फेर स ताकि ओकरा संरक्षित करबाक सामूहिक प्रयास हेबाक चाही.
मूल आलेख© डाॅ. किशन कारीगर
सहयोग- दिनेश यादब
सहयोग- कुणाल