मिथिला के अमृत स्वर
मुलतान से मिथिला के संदेस,
मुधर सुगंधित गीत मे आह्वान,
बंगालक मोनमे गूँज गुँजित,
कविशेखर केर मधुर गान।
मैथिली संस्कृतिक अमिट अहीं,
पायलक टनटन मे जीनगिक राग,
प्रेमक धरामे रागिनी रचल,
एहि माटिक संजीव आ पावन तिहार।
गंगाक तट से सोनक धारा,
कोशीक अविरल तीव्र बहाव,
माटि में घुलल स्नेह आ दुलार,
घर-घर गूँजित गीतक आवाज।
संध्या मे जखने दीप जरल,
कजरीक स्वर-लहरी बहल,
बंगालक मीठ वाणी से
अमृत बरसल सब ठाँम आ क्षण।
उत्तरक दिश मे चलल बियार,
मधुबनक सुगंध लेने जाहे,
एहि भूमि पर शब्दक तान
अनकहल विस्तार बताऐ।
मुलतानक धरती पर सेहो
मिथिलाक मधुर गीत गूँजित ,
प्रेमक बस्ती जतेक कोहबर,
सेतु रसमित्र रीत तोहर बंगाली ।
विद्यापतिक लेखनी,
अखनहुँ मनके गहिर छुऽ लेल,
वेदांतक ध्वनि संगहि,
वाणी में रसक बूँद गिरल।
गुरुदेवक वीणा से नुकैत
प्रेमक मधुर संगीत,
बंगालक धरती में उदन,
मिथिलाक अमर प्रीतनाद हमर।
सागर पार पहुँचल ई स्वर,
मिथिलाक हृदय गुनगुनाएल,
आओ अतिथि, स्वागत अहि,
प्रणयक गीत गान सजाओल।
बाँसुरीक मधुर तान बजाओ,
एहि माटि केँ फेरो महकाओ,
मधुर गीतक गूँजा कऽ
मिथिलाक संगीत सुनाओ।
बैधनाथजी वास जेकर,
अचरि मे गुमसुम बसल,
एहि माटिक पावन कथा,
प्रेमक स्रोत जतेक उद्भव
मैथिलीक धरोहर अमर जीवन,
दिल्लीक पुरान पियास पुरान,
पायलक छनछन में नुकल
विदेहीक अमृत एहसास भेैटत।
आओ, गीत सुनाओ,
एहि माटि केँ अपन बनाओ,
मिथिलाक आँगन पबनि तिहार,
जीवनक रस अहूँ पाइ जाउ।
मुलतान सँ बंगाल धरि,
हर कण में मिठास भेटल,
मिथिलाक अमर विरासत,
हर सुर मे बास हो तोहर।
—- श्रीहर्ष —-