मिथिलादेश(कविता)
मिथिलादेश(कविता)
जनक नंदिनी जानकी माता,
हम छी तोर दुलारा
एक बेर मे लागैए जेना ,
सयबेर जन्म होइत माता
देव ललायित एहि धरती पर,
एलौं हम माता
मिठगर सुन्नर बोल सभ सचा,
कतय पबितौं हम माता
भारतवर्ष केर एही जमीन पर
तरसैत अछि आबयवला
कोन-कोन पथसँ जाउ ,
असमंजस मे छी माता
अलग अलग पावन अतह
हिअ भोला भाला
हाथ पकड़ सिखू चलयै के ,
तोङि नै पायब इ जग सारा
सुख के आंगन दुख तरसै,
असुर भयाओनि जतय माता
धुल अहाँ चरण के,
अगिला जन्म होऊ दुलारा
ई कल जोड़ि अंतिम बंदन,
जिनगी अर्पित अछि माता
परमात्मा दीअऽ एक जिनगी,
देखि संकू देवभूमि विख्याता
हमर अंतिम छन होइ ऐहन ,
जेहन विधापति गंग धारा
हमर पंचतत्व मिलन छन हुअए ,
जखन आँचर मिलै तोर माता
हमर मुखसँ माँ वाणी देवक भाषा
उगना-उगना कहैत मरि जाउ,
स्वर्ग नै कखनो अभिलाषा
हमर मुखपटल ऐहन मुसकुराबै,
आओर दुनिया मे दुखक छाया
आह वैह जीवन जतय शोभित,
कल्प पाहुन रामक छाया
दीअ हमरा भाषा वैह,
जाहिमे पग पग प्रेमक भाषा
जनक नंदिनी जानकी माता,
हम छी तोर दुलारा
मौलिक एवं स्वरचित
©श्रीहर्ष आचार्य