” मिथिलाक बदलल स्वरुप “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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यदा -कदा हम अपन कापर धुनय लगैत छी जे मैथिली सभ्यता, संस्कृति,रीति-रिवाज आ पुरनका धरोहर लुप्त भेल जाइत अछि ! मुंडन ,उपनयन ,विवाह आ मांगलिक पूजा -पाठ क रूप रेखा बदलि रहल अछि ! गीत नाद विशेषतः लुप्त भेल जाइत अछि ! एक आध टाबे गीत गायन भेटति इ गामक स्वौभाग्य अन्यथा डी जे आ म्यूजिक सिस्टम गटकि गेल अछि ! ..बरियाति क परिचय ,गप्प -सप्प
हैत केना ?..अन्हरिये जाऊ ..भोजन करू ..जनेऊ -सुपाड़ी लिय .आ भागू ! चतुर्थी ,भडफ़ोड़ीं ,मधुश्रावणी ,कोजागरा आ दूराग्मन क आनंद मलिन भऽ गेल ! …रहब दिल्ली ..कलकत्ता …भाषा .परिधान बदलि गेल ! ..बच्चा संगे मैथिली नहि बाजब ..! गाम एनाय कष्टगर लागत ! बच्चा -बुच्ची जं कतो आन ठाम जे विवाह कऽ लेत ..त हम कहैत छी ” आज कल ऐसा होता है “! चलू ..मानि लेलहूँ …परंच मिथिला पहुँचि..उखरि-समाठ, जांत,ढेंकी, चरखा ,गीत नाद ,सभ्यता आ संस्कृति क उकाही केनाइ हमरा शोभा नहि देत अछि …बदलल स्वरुप कें स्वीकार करक चाही !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका