” मिथिलाक नारीक बदलल स्वरुप “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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आब मात्र कविता धरि
सीमित रहि गेल ,–
” चलू प्रियतम मेला चलू.
.हम चूड़ी कीनब ,
हम लहठी कीनब ,
चन्द्रहार लेब
टिकुली ,अल्त्ता
नेल पोलिश लेब “!!
“आब गामो मे ऑनलाइन
सब भेट जाइत अछि !
आहां खाली ‘पे टियम’
सं पाई पठाऊ
घर बैसल सब चीज द’ जाइत अछि !!
आब हम सओउन मे
नोर अप्पन किया बहायब ?
मधुमास ,होरी उत्सव मेअप्पन
अंग किया जरायब ??
ऑनलाइन टिकट कटा
ए० सी ० मे बैइस केंआहां लग
पहुँचि’ धप्पा ‘ कहि देब !
मन जतय करत
कलकत्ता ..बोम्बॉय घूमि लेब !
!
मोबाइल लैपटॉप क जमाना छैक ,
गेल जमाना जखन
मनी आर्डर अबैत छल !
हमर चिठ्ठी डाकिया बाबू
घर ल’ अबैत छल !!
आब ए० टी ० ऍम ०
हुनका सं ल ‘ लेने छी !
पाईक खगताह लेल ककरो
नहि मुँह तकैत छी !!
कवि कविता लिखैत रहथू
हम नहि अबला नारी छी !
आब रणक्षेत्र ..आकाश ..आ ..समुद्र मे
गर्व सं झंडा फहराबैत छी !!
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड
शिव पहाड़
दुमका
झारखण्ड