” मित्रों के पसंदों को अनदेखी ना करें “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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जब हमारी पाँचों उंगलियाँ बराबर नहीं हैं तो भला हम फेसबुक से जुड़े सबलोग एक जैसे कैसे हो सकते हैं ? सबों की अपनी अपनी पसंद होती है ! किसी ने फेसबुक के पन्नों को अपना ‘कर्म भूमि ‘माना…किसी ने व्हात्सप्प को गले लगाया …किन्हीं को मेसेज अच्छा लगता है ….कई लोग तो गूगल के दुसरे विधाओं में लिप्त रहते हैं !… अब हमें यह सोचना होगा कि कौन -कौन से व्यक्तिओं की कौन -कौन सी चाहत है ? ..मित्रता जब हमने की है तो उनके पसंदों को जानना हमारा उद्देश्य होना चाहिए ..पहचानना चाहिए …उनके पसंदों का ख्याल करना चाहिए ..! पल्ला झाड़ने से ..डिजिटल फ्रेंडशिप के बहाने से ..हम अपने मित्रों को खोने लगते हैं ! जिस तरह हम एक झटके से मित्रों की सूची में शामिल हो जाते हैं वैसे ही एक झटके से हमें वे… ‘अन फॉलो ‘…अनफ्रेंड…क्रमशः …’ब्लाक ‘….कर देते हैं ! ….आप जो भी करते है वो करें ..परन्तु एक दुसरे के पसंदों का सम्मान करना हम सीख लें ! मित्रता कैसी भी हो …डिजिटल …या ..इर्द गिर्द …पर मित्रता की परिभाषा नहीं बदलती है ….और कुछ खास आधारभूत सिधान्तों पर मित्रता आधारित थी …आधारित है …और आधारित रहेगी !… समान विचारधारा ….सहयोग की भावना … समय -समय पर मिलने की चाह….गोपनीयता के परिधिओं में हमारी मित्रता घुमती रहती है !…हाँ ..तो बात पसंद की कर लें !..हमें यह देखना होगा कि कहीं ये फेसबुक से तो नहीं जुड़े हैं ?..खामखा ..उनके व्हात्सप्प पर …मैसेंजर पर उधार के पोस्टों को चिपकाते रहते हैं ..हो सकता है आप उसे उत्कृष्ट समझ रहे हों ..पर वे तो कहीं और उलझे पड़े हैं !…इसी तरह गूगल के अन्य विधाओं का हाल है जिसे बरिकिओं सोचना …समझना ..और ….कार्यान्वन करना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है तभी हम निखर पाएंगे और तभी हमारी मित्रता अक्षुण रहेगी !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत