मित्रता
उम्र भर खोजता रही मित्रता
कोई तो अब बचा सखा ही नही
फूल से दोस्ती मैं कर बैठी
पेड़ पे कोई अब लता ही नही
खोयी खोयी सी फिजायें थी सारी
मगर बागबां की कोई खता ही नही
क्यूँ मैं दूर अब इतनी अा पहुँची
कैसे क्यों रूक गई पता ही नहींं
दिल लगाने से बाज़ आऊं ना
ऐसा उजड़ी की घर बसा ही नहीं
प्यास अपनी बढ़ाती रहती हूँ
अब मिलो अब तो लालसा ही नहीं