मित्रता
इस दुनिया में हर शय की कुछ न कुछ मांग है ।
गुस्सा झुका हुआ सिर मांगता है ,
अहंकार आत्मप्रशंसा से संतुष्ट होता है ।
ईर्ष्या द्वेष को परपीड़ा से प्रसन्न होता है ।
प्रेम त्याग और बलिदान मांगता है ।
शिक्षा ,प्रतियोगिता परीक्षा से संतुष्ट होती है ।
रिश्ते समझौता मांगते है।
बस ! एक मित्रता को मित्रता चाहिए ,
और कुछ नही ।,
कुछ भी नही ।