“मित्रता में धृष्टता कैसी “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
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डिजिटल मित्रता में हम तस्वीर को निहारकर उनके व्यक्तित्व का आंकलन करना दुर्लभ हो जाता है ! व्यक्तिगत प्रोफ़ाइलों में प्रायः -प्रायः अपर्याप्त सूचना हमें चकचोंध कर देती हैं ! रहते कहीं ओर हैं ठिकाना कहीं ओर का रहता है !
शिक्षा ,महाविध्यालय और विश्वविध्यालय का नाम लिखना भूलते नहीं ! पर अपनी उम्र को दिखाना भूल जाते हैं ! इन महारथियों की संख्या कम नहीं है ! इनकी पहचान हम अनेकों विधाओं से करते हैं ! वैसे व्यक्तिगत पहचान शायद ही हो पायें !
उनकी लिखाबट,समालोचना ,टीका -टिप्पणी ,सकारात्मक विचार ,शिष्टता,शालीनता और यथा -योग्य प्रतिउत्तर को जब वे लिखेंगे तो उनकी पहचान हो जाएगी ! यह पद्धति प्राचीन कालों से चली आ रहीं हैं !
पत्र -लेखन कला के माध्यम से हम एक दूसरे के व्यक्तित्व को पहचान जाते थे ! साहित्य सदा दर्पण माना गया है ! सर्विस सेलेक्सन बोर्ड में मनोव्यज्ञानिक कैंडिडैट के मनोव्यज्ञानिक उत्तरपुस्तिका को पढ़कर ही आंदजा लगा लेते हैं कि किनके हाथों में सेना का नेतृत्व सौंपना है !
आज भी डिजिटल मित्रता में हम इसी विधा के प्रयोग से अपने मित्रों का सही चुनाव कर सकते हैं ! कुछ लोगने तो धृष्टता को अपना अस्त्र बना रखा है ! अभी -अभी मित्र बने ,कुछ बातें हुयीं नहीं ,हम एक दूसरे को समझ भी ना पाये और निकाल पड़े अशिष्टता की ओर !
किसी ने प्यार भरा अभिनंदन पत्र लिखा और हमने अपना अंगूठा दिखा दिया ! एक क्षण हम मान भी लें कि आप व्यस्त हैं फिर आप लगातार
मेसेंजर पर अनाप- सनप उधर के पोस्ट भेज रहे हैं ! आखिर दूसरों के पसंद को जाने बेगैर दनादन पोस्ट भेजे जा रहें हैं ! आखिर “मित्रता में धृष्टता कैसी “? हमें दिल से जुड़ना होगा तभी हमारी मित्रता अमर रहेगी !
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डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका