मित्रता की परख
मित्र बनाने वालों का भी इक चित्र होता है
जों है उसके अलावा भी इक चरित्र होता है
कहते है विपदा मैं साथ दे वो सुमित्र होता है
मुश्किल में छोड़े साथ वो छायाचित्र होता है
महके सुगंध से तन-मन-जीवन वो इत्र होता है
मित्रता लाभ के कारण करे वो कुमित्र होता है
दूर से कर दो प्रणाम बड़ा वो अमित्र होता है
छल करते सदा ये इनका रेखाचित्र होता है
कहते हैं ‘राणाजी’ वो बनावटी मित्र होता है
मित्र वो डाकू हैं कभी ना विश्वामित्र होता है
©ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी ”
सनावद (मध्यप्रदेश )
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