मिठाई मेहमानों को मुबारक।
आहे! भरती हुई ,तेज धूप से बचती हुई, गली से घर की ओर बढ़ रही थी सुमन। सिर पर दुपट्टा ओढ़े बगल में पर्स दबाकर और एक हाथ में विद्यालय के बच्चों की पुस्तिकाएं लिए हुए थी। सुमन एक सांवली ,छोटी ऊंँचाई और पतली-दुबली काया की लड़की थी। वह एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापिका थी। दरवाजे के दहलीज में कदम पड़ते ही,” आ गई बेटी सुमन!” हांँ मांँ । जल्दी से कपड़े बदल ले मेहमान आ रहे हैं ।यह सुनकर सुमन ठहर सी गई ।वह चौंक कर बोली,”मेहमान माँ!”उनसे मेरा क्या वास्ता ? यह सुनते ही मांँ थोड़ी ऊंँची आवाज में बोली,”लड़के वाले आ रहे हैं तुझे देखने।” वह कुछ कह पाती की मांँ किसी काम से छत पर चली गई ।
सुमन सोचने लगी कि अभी तो गरीबी और कठिन परिस्थितियों के संघर्ष से उभरे ही हैं ।फिर से संघर्ष की बेड़ियों में जकड़ने वाली हूंँ।काश! खुद यह एहसास करती कि जीवन में सुख भी है।जीवन के कुछ पल खुश रहती, मुस्कुराती और स्वयं को थोड़ा संभाल पाती ।सहसा मांँ की आवाज आई,”थोड़ा ढंग के कपड़े पहन लेना।” सुमन बोली मांँ,”इतनी जल्दी क्या है मांँ शादी की ?” मांँ ने तेज स्वर में कहा,”पूरे अट्ठाइस वर्ष की हो गई हो।एक- न- एक दिन शादी करनी ही है ।” सुमन ने मांँ से कहा,”हां मांँ करनी तो है ।पर घर की हालत भी संभले ।”
सुमन ने मांँ की ओर देख कर कहा,” याद है मांँ तुम्हें। जब हम लोग कत्था बनाने के लिए जाया करते थे। उस समय मैं तुमसे भी एक घान ज्यादा ही बनाती थी। उसी रुपयों से विद्यालय की फीस भरती थी।” यह सुनकर मांँ ने कहा,” हां! तब जरूरत थी। घर की हालत खराब थी।” मांँ अब मेहमानो के लिए खाना की व्यवस्था करने में व्यस्त थी। सुमन थोड़ी देर चुप रही। अपनी बात को आगे बढ़ाती हुई सुमन ने कहा,” मांँ! तुम्हें याद है, जब मैं एक बैंक बाबू के यहांँ खाना बनाने जाती थी।मुझे कहा गया कि मैंने बाबूजी के पर्स से पैसे निकाले हैं।” मांँ तुम परेशान क्यों हो? यह सुन मांँ बैठ गयी।
मांँ; सुमन जब से तुम्हारी नौकरी लगी है। ज्यादा ज्ञान सिखाने लगी हो। तुम्हारे बाद मुझे और भी बेटियों की शादी करनी है।समाज की बातें और लोगों के ताने सुन परेशान हो गई हूंँ। तुम्हारे पिता भी कहीं काम धंधा नहीं करते और घर-बार की चिंता भी नहीं है। आजकल कौन शादी करता है?गरीब और ओछे रंग-रूप वाली से। यह सुनकर सुमन थोड़ा शांत हो गई। मांँ के थोड़ा समीप आकर सुमन ने फिर कहा,” मांँ मेरे बाद कौन देखभाल करेगा तुम्हारा।” फिर से क्या तुम दूसरों के खेतों में काम करने जाओगी? अब तो तुमसे कहीं मजदूरी भी नहीं हो पाएगी। भाई-बहनों को भी पढ़ा लिखा दूँ कुछ दिन। तभी अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई।
सुमन के मामा बलदेव और पिता रामदीन आये।
सुमन की ओर रामदीन ने देख कर कहा,”सुमन बेटी !तुम्हारी शादी हो जाए तो फर्ज से फुर्सत हो ले।” सुमन सिर हिलाकर ,”हाँ।” तभी मेहमान आते हैं ।एक बुजुर्ग व्यक्ति और दो अन्य व्यक्ति साथ में थे।
सुमन बिटिया,” मेहमानों को चाय लेकर आओ।” सुमन उम्मीदों पर पानी फेर चाय लेकर पहुंँची।गले में लाल गमछा ,पैंट शर्ट पहने हुए ,ऊंँचे-लंबे कद के एक मेहमान की ओर इशारा करते हुए ।लड़की को देख दूसरे मेहमान ने पूछा ,”आप सरकारी विद्यालय में अध्यापिका हैं ।” जी हांँ ।लड़के से कहा तुम और सुमन कुछ पूँछना चाहते हो तो पूछ लो ।सुमन ने मन रखने के लिए लड़के से पूछा ,”आप कहांँ तक पढ़े हैं और क्या काम करते हैं ?” लड़का थोड़ा सहमा और कहा,” बारहवीं पास हैं।” उसकी बात को संभालते हुए, बुजुर्ग मेहमान ने कहा,”जैसा बिटिया चाहेगी वही होगा ।”रामदीन हमें तो बिटिया पसंद है ।मांँ के कानों में यह बात पड़ते ही मानो खुशी का ठिकाना न रहा । रामदीन ने हांँ कह कर बात को पक्की कर दी। लड़की को मिठाई और कुछ रुपए दे दिए गये। मामा बलदेव ने सुनकर कहा,” अच्छे लोग हैं। सुमन की शादी करवाने की जिम्मेदारी हमारी है अब।”
सुमन को वहांँ से जाने दिया गया ।वह कमरे में आयी।सोचने लगी की अचानक से जीवन में परिवर्तन होने लगा ।उसकी हृदय की गति बढ़ रही थी ।उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे ।तभी उसकी छोटी बहन चिढ़ाते हुए ,”दीदी! जीजा किसी कंपनी में काम करते हैं ।”यह सुन सुमन सहम गयी।सभी ने हांँ कर दी थी।मौका भी नहीं दिया विचार करने का ।लड़के का शारीरिक विकास सुमन से अत्यधिक था।बराबरी तो दूर उसके छाती तक न थी।उम्र में सुमन से दस वर्ष अधिक था ।सुमन को पसंद न आया।तभी मांँ अंदर आयी।मांँ बोली ,”कहांँ खोयी हो।मेहमान तो जा चुके हैं ।”
एक दिन गुजरा ।सुमन की बेचैनी बढ़ती गयी।अगले दिन वह और भी चिंतित लगने लगी ।मन का बोझ बढ़ता ही जा रहा था ।उसने सोचा अगर अभी नहीं मना किया तो जीवन भर बोझ के तले दबकर नहीं रह पाऊंँगी । वह स्वयं पर विश्वास नहीं कर पा रही थी।वह सोचने लगी कि स्वयं को धोखा दे रही है । सहसा!सुमन ने आवाज दी ,”मांँ, मांँ !” मांँ बोली ,”क्या हुआ ?”
मांँ मुझे यह लड़का पसंद नहीं है ।मुझे नहीं करनी यह शादी ।मांँ यह सुन आश्चर्यचकित रह गयी।मांँ मुझे लड़का ठीक नहीं लग रहा है । यह खबर रामदीन सुनते ही नाराज हुए।मांँ ने कहा,”अपने मन की हो गई लड़की ।” मामा के जुबान खराब कर रही हैं ।समाज में बदनामी करायेगी। मांँ ने चुप्पी साध ली।सुमन ने तो अपनी बात रख दी और कहा,”मिठाई मेहमानों को मुबारक।”सुमन के मन का बोझ हल्का हुआ ।घर पर सन्नाटा छा गया।
बुद्ध प्रकाश ;
*****मौदहा,हमीरपुर।