*मिठाई का मतलब (हास्य व्यंग्य)*
मिठाई का मतलब (हास्य व्यंग्य)
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भारत में ज्यादातर लोग मिठाई के शौकीन होते हैं। उन्हें भोजन के बाद मिठाई पसंद है। उनके लिए मिठाई का मतलब केवल मिठाई होता है। किसी ने रसगुल्ला खा लिया, किसी ने कभी जलेबी खा ली, किसी ने लड्डू या पेड़ा खा लिया अर्थात एक-आध टुकड़ा मिठाई का चखना ही मिठाई का अर्थ होता है। लेकिन यह सब तो साधारण बातें हैं।
मिठाई के और भी गहरे अर्थ होते हैं। लोग अपना काम निकलवाने के लिए जब किसी के पास जाते हैं, तो मिठाई लेकर जाते हैं। कहते हैं- “लीजिए साहब”
कई बार बिना मिठाई लिए अफसर के पास जाना अच्छा नहीं माना जाता। कम से कम मिठाई का एक डिब्बा अधिकारी के पास जरूर जाना चाहिए। खाली हाथ जो व्यक्ति अधिकारी के पास जाते हैं तो अधिकारी आगंतुक के दोनों हाथों को देखा है और जब उसे दोनों हाथ खाली नजर आते हैं तब उसे गुस्सा आ जाता है। वह कहता तो कुछ नहीं है, लेकिन काम खटाई में पड़ जाता है। चतुर लोग इसीलिए मिठाई लेकर जाते हैं।
किसी के भी घर बिना मिठाई के जाना अच्छा नहीं माना जाता। कई लोग तो यह अपेक्षा करते हैं कि आप जब भी उनके घर आएं तो मिठाई अवश्य लेकर आएं । यह एक प्रकार से घर में आने का ‘प्रवेश शुल्क’ होता है।
मिठाई में जरूरी नहीं है कि मीठी चीज ही लेकर जाएं । आजकल काजू-बादाम के गिफ्ट पैक भी चलने लगे हैं। यह भी अच्छे माने जाते हैं। केवल खाने-पीने की वस्तुएं ही क्यों ? आप चांदी की कटोरी, चम्मच या गिलास भी मिठाई के तौर पर किसी को दे सकते हैं। यह यद्यपि खाई तो नहीं जाती लेकिन फिर भी यह ऐसी मिठाइयां हैं जिन्हें पाकर मन प्रसन्न आवश्यक हो जाएगा। भला कौन सा काम है जो चांदी अथवा सोने की वस्तुएं मिठाई के तौर पर लेने के बाद व्यक्ति नहीं करेगा? ज्यादातर काम मिठाई देकर हो ही जाते हैं।
मिठाई देना भी एक कला है। जो इसमें पारंगत होते हैं, उनकी विनम्रता देखने के योग्य होती है। उनका खुशामदी स्वभाव अपने आप में संग्रहालय में रखने योग्य होता है। क्या बढ़िया चेहरे पर हॅंसी लाकर यह लोग मिठाई पेश करते हैं! मिठाई से ज्यादा मीठी उनकी बोली होती है। मिठास बोली में ही नहीं, आंख-कान बस यों कहिए कि शरीर के प्रत्येक हाव-भाव से प्रकट हो रही होती है।
सरकारी दफ्तरों में बिना मिठाई के कोई काम नहीं होता। मिठाई प्रायः लिफाफे में दी जाती है। अनेक बार ऑनलाइन भी बड़े-बड़े सौदों में इसका पेमेंट होता है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सब प्रकार के सौदे मिठाई के आधार पर ही चलते हैं। नियुक्तियां मिठाई खाकर की जाती हैं। पदोन्नतियों में भी मिठाई का खेल चलता है। ट्रांसफर मनमाफिक जगह पर मिठाई खिला कर ही हो पाता है। जहां मिठाई खाने के ज्यादा अवसर होते हैं, उन स्थानों पर अधिकारी की पोस्टिंग तभी हो सकती है जब वह उच्च अधिकारियों को बढ़िया मिठाई खिलाये। आदमी दिल कड़ा करके बढ़िया मिठाई खिलाता है। और फिर दो-चार साल पद पर रहते हुए मिठाई खाकर उस खिलाई गई मिठाई का सारा मूल्य वसूल लेता है। ‘मिठाई खाओ और मिठाई खिलाओ’ इसी आधार पर समाज चल रहा है। जिसको मिठाई खिलाई जाती है, वह एक प्रकार से नैतिक उत्तरदायित्व से बॅंध जाता है। उसे मिठाई खिलाने वाले का कुछ तो ख्याल रखना ही पड़ता है।
कई लोग मिठाई खाने से इनकार कर देते हैं। ज्यादा जिद करो तो कहते हैं हमें डायबिटीज है। हम मिठाई नहीं खाते। मिठाई न खाना वास्तव में एक बीमारी है। सौभाग्य की बात है कि ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है। लोगों के काम प्रायः मिठाई खिला-खिला कर आसानी से हो जाते हैं। जो लोग मिठाई नहीं खाते हैं, उन्हें भी अगर एक बार मिठाई खाने का चस्का लग जाए तो फिर नहीं छूटता। अच्छी कोठी, महंगी कार, देश-विदेश में पिकनिक मनाने के अवसर और शानदार दावतें काफी हद तक वही लोग कर पाते हैं जो मिठाइयां खूब खाते हैं। उन लोगों का जीवन धन्य है, जिनके पास रोजाना दो-चार किलो मिठाई देने वाले आते रहते हैं।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451