मिट्टी है अनमोल!
जगह किसी की नहीं जो चाहे जहां बैठ गया,
अब इसमें क्या लेना वो शख्स वहां बैठ गया,
अमीरे शहर का निज़ाम तो कुछ ऐसा हुआ,
बैठना था नहीं जिसे वह शख्स वहां बैठ गया।
बात बिगड़ गयी इतनी की अब बात ही न रही,
भला वह शख्स उसी जगह क्यों वहां बैठ गया,
दयारे जमीं तूँ फैसला कर दे मुक़म्मल सबका,
तेरी इजाजत के बिना जो चाहे जहां बैठ गया।