मिट्टी के घरोंदो में
मिट्टी के घरोंदो में कभी अहसास पलते है,
वो सर्र से बह जाते है, बिखर कर रह जाते है,
जब भी बादल पानी से भरकर, बरसात करते है,
मिट्टी के घरोंदो में कभी अहसास पलते है,
वो कड़क कर गिरते है, चमक कर रह जाते है,
जब प्यासी धरती नीले अम्बर से इज़हार करती है,
मिट्टी के घरोंदो में कभी अहसास पलते है,
वो दिल की बात होती है, आँखों में लहरे साथ होती है,
जब भरे को कंकड़ पत्थर , तो बूँद की क्या औकात होती है,
मिट्टी के घरोंदो में कभी अहसास पलते है,