Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Nov 2021 · 2 min read

” मिट्टी की खुशबू “

( एक सस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
==============
गाँव जाने की ललक हमारी बचपन से रही ! मिट्टी की खुशबू ..पेड पौधों की हवा ..सौंधी -सौंधी मदमस्त बनाने वाली भांग की पौधों की महक ..का एहसास ही बता देती है कि हम अपने गाँव आ गए ! अँधेरी रातों में भी ट्रेन की खिडकियों से आभास होने लगता है ! ट्रेन रूकती है ..हम स्थानीय भाषाओँ का शोर गुल सुन हमें यकीन होने लगता हैं ..यही हमारी जन्म भूमि है ! कहने के लिए तो हम कह सकते हैं ” सम्पूर्ण विश्व ही हमारा घर है ” ..परंच हम गांवों के परिवेशों में बड़े होते हैं ! गांवों से हमारा लगाव होता है ! हम एक दुसरे को भलीभांति जानते हैं ! हमारे बाबू जी हमें जब गाँव ले जाते थे तो प्रत्येक दिन गाँव के लोगों से मिलने का कार्यक्रम होता था ! आज चलो …अनुरुध्य काका के पास ..चलो यमुना दादा से मिलके आते हैं …. राजकुमार काका ,फगु दादा ,सहदेव गुरुजी ,….लवो काका ,……झब्बो काका ..सबों से परिचय करना और सारे बड़ों को झुककर प्रणाम करना और उनलोगों के आशीष पाकर अपने को धन्य समझना ! पड़ोस के गाँव से भी लोग मिलने आ जाते थे ! ….सबसे मनमोहक बातें वहाँ की स्थानीय भाषा है जो ह्रदय को छू देती है ! ज्यों ही हमारे कदम हमारे स्टेशन पर पड़ते हैं ..कुली ..रिक्शावाला ..और टेम्पोवाला हमारी अपनी भाषा में बोलना प्रारंभ कर देते हैं ..जो एक सुखद एहसास होता है ! हम क्यों ना आधुनिक व्यंजनों की वाध्यता से अपनी क्षुधा मिटाते रहें पर माँ की हाथों का व्यंजन को भला कौन भूल सकता है ? ‘माँ तुम्हारे हाथों की बनी मछली जो बनती है उसका जबाब नहीं ! ‘जिन -जिन व्यंजनों से हम दूर रहे माँ के पास आकर सारी अभिलाषाएं पूरी हो जाती है ! पर माँ तो माँ होती है ..’आज अपने बच्चों की पसंद की बथुआ साग बनाउंगी…दही बाड़ा बनाना है इत्यादि इत्यादि ..पर इन कम दिनों में मन की मुराद माँ की पूरी नहीं होती ! हमने भी प्रायः प्रायः विभिन्य प्रान्तों का स्वाद चखा पर यहाँ की बात ही कुछ और है ..यहाँ का ….”झालवाडा”…..”बैगनी पकोड़ा “..”पियाजी पकौड़ा “….घुघनी “……मुड़ी …जलेबी ….सिंघाड़ा .शायद ही कहीं मिले ? जिस परिवेश में हम जन्म लेते हैं वहां की बनी व्यंजन के हम सदा अभ्यस्त होते रहते हैं ! ..हम तो अपने गाँव का गौरव ,….भाषा ….संस्कार …व्यंजन ..और महत्व का सन्देश तो आनेवाली पीढ़ियों को सुनते हैं और अपने गाँव की मिट्टी की खुशबू सब पर बिखेरते हैं !
=======================
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
साउंड हेल्थ क्लिनिक
एस ० पी ० कॉलेज रोड
दुमका

Language: Hindi
545 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
4024.💐 *पूर्णिका* 💐
4024.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जो कण कण में हर क्षण मौजूद रहता है उसे कृष्ण कहते है,जो रमा
जो कण कण में हर क्षण मौजूद रहता है उसे कृष्ण कहते है,जो रमा
Rj Anand Prajapati
#OMG
#OMG
*प्रणय*
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
एक दिन इतिहास लिखूंगा
एक दिन इतिहास लिखूंगा
जीवनदान चारण अबोध
लघुकथा - दायित्व
लघुकथा - दायित्व
अशोक कुमार ढोरिया
अंताक्षरी पिरामिड तुक्तक
अंताक्षरी पिरामिड तुक्तक
Subhash Singhai
बुनियाद के पत्थर
बुनियाद के पत्थर
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
Jeevan Ka saar
Jeevan Ka saar
Tushar Jagawat
कि दे दो हमें मोदी जी
कि दे दो हमें मोदी जी
Jatashankar Prajapati
"अपना "
Yogendra Chaturwedi
"ध्यान रखें"
Dr. Kishan tandon kranti
عظمت رسول کی
عظمت رسول کی
अरशद रसूल बदायूंनी
कविता
कविता
Mahendra Narayan
माँ में दोस्त मिल जाती है बिना ढूंढे ही
माँ में दोस्त मिल जाती है बिना ढूंढे ही
ruby kumari
पेंसिल हो या पेन‌ लिखने का सच हैं।
पेंसिल हो या पेन‌ लिखने का सच हैं।
Neeraj Agarwal
यह बात शायद हमें उतनी भी नहीं चौंकाती,
यह बात शायद हमें उतनी भी नहीं चौंकाती,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
‘’The rain drop from the sky: If it is caught in hands, it i
‘’The rain drop from the sky: If it is caught in hands, it i
Vivek Mishra
𝕾...✍🏻
𝕾...✍🏻
पूर्वार्थ
बस जिंदगी है गुज़र रही है
बस जिंदगी है गुज़र रही है
Manoj Mahato
रिश्ता उम्र भर का निभाना आसान नहीं है
रिश्ता उम्र भर का निभाना आसान नहीं है
Sonam Puneet Dubey
एक दिन जब वो अचानक सामने ही आ गए।
एक दिन जब वो अचानक सामने ही आ गए।
सत्य कुमार प्रेमी
प्रेम के मायने
प्रेम के मायने
Awadhesh Singh
वीर पुत्र, तुम प्रियतम
वीर पुत्र, तुम प्रियतम
संजय कुमार संजू
जब कोई हो पानी के बिन……….
जब कोई हो पानी के बिन……….
shabina. Naaz
*शीतल शोभन है नदिया की धारा*
*शीतल शोभन है नदिया की धारा*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
एक एहसास
एक एहसास
Dr fauzia Naseem shad
जीना सीखा
जीना सीखा
VINOD CHAUHAN
शेखर ✍️
शेखर ✍️
शेखर सिंह
मैं तेरा श्याम बन जाऊं
मैं तेरा श्याम बन जाऊं
Devesh Bharadwaj
Loading...