मिट्टी का मटका,कुंडलियाँ छंद
कुंडलियाँ छंद
जीवन दाता नीर है ,छलके गगरी धार
प्यास बुझे जलधार से,है कोका बेकार ।
है कोका बेकार ,मिले मिट्टी से धन-बल ।
सौंधी गंध अपार,धरा का जीवन है जल
बदले रूप हजार ,प्रेम से खाई मोहन।
छल छल छलके नीर ,घड़े से मिलता जीवन।।
पाखी