मिट्टी का बस एक दिया हूँ
कण-कण को आलोकित करता
संघर्षों का ज़हर पिया हूँ
कीट, पतंगों से रण करता
पल-पल ख़तरा मोल लिया हूँ
* मिट्टी का बस एक दिया हूँ
तमस मिटाने को इस जग से
तन मन अर्पित आज़ किया हूँ
दर्द ज़माने का सह कर भी
जिह्वा को हर बार सिया हूँ
* मिट्टी का……………………..
हिय में जलती घी की बाती
मै को अपने ज़ला दिया हूँ
क़ैद सलाखों में रहकर मैं
दुःख के आंसू रोज़ पिया हूँ
* मिट्टी का……………………..
प्रित का दीप जलाकर तन में
न्योछावर दिन रात किया हूँ
आलोक जगाने को जग में
देहरि – देहरि प्राण दिया हूँ
* मिट्टी का………………………
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)