मिट्टी का चूल्हा !
मक्के की रोटी और सरसो का साग
जब सिकती थी मिट्टी के चूल्हे कि आंच पे
गरीब थे तब पर रहते थे हम भी ठाठ से,
होके अमीर अब गैस पे पका हुआ खाते हैं,
बस खाने में पहले वाली स्वाद नहीं पाते हैं।
माँ की डांट और दुलार को भी तरस जाते है
होके बड़े हम असली ख़ुशी को ही भूल जाते हैं
मिट्टी के चूल्हे पे बने खाने को न भुला पाते हैं …
…सिद्धार्थ