मिटे भेद विकराल
सज धज कर तैयार है, धनतेरस बाजार।
महँगाई को भूल कर, उमड़े खरीददार।।
सुख, समृद्धि, सेहत मिले, बढ़े खूब व्यापार।
घर, आँगन रौशन रहे, दूर रहे अँधियार।।
कोई मालामाल है, कोई है कंगाल।
दरिद्रता का नाश हो, मिटे भेद विकराल।।
© हिमकर श्याम
सज धज कर तैयार है, धनतेरस बाजार।
महँगाई को भूल कर, उमड़े खरीददार।।
सुख, समृद्धि, सेहत मिले, बढ़े खूब व्यापार।
घर, आँगन रौशन रहे, दूर रहे अँधियार।।
कोई मालामाल है, कोई है कंगाल।
दरिद्रता का नाश हो, मिटे भेद विकराल।।
© हिमकर श्याम