मिटटी की मटकी
मिटटी की मटकी से पानी जो पिया
मेरा पानी पीना ही दुश्वार हो गया
सुख चुका का था गाला उस वक्त मेरा
जब गुरु देव का हाथ सर पर करता वार था !!
भूल गया था मैं, कि मैं अछूत आज भी हूँ
मिटटी तो सब एक है पर विचार से दूर हूँ
पानी पीने की सजा इस तरह मिली मुझे
मैं मटकी के जैसे मिटटी में शामिल हो गया !!
हो अगर गुरुदेव तुम उच्च जाति के तो
भूलकर भी मटकी का पानी न पीना
मुझ जैसे न जाने कितने शामिल हैं अछूत
इस माटी में मिले हुए , तुम अपनी जाति
को कभी अब अछूत न होने देना !!
उस हवा में भी सांस न लेना कभी तुम
उस हवा में मेरी चिता की आह मिल जायेगी
बचा के रखना तुम दामन अब अपना गुरुवर
हो सके तो इस धरती की माटी से खुद को दूर रखना !!
नहीं जानता था कि मटकी को स्पर्श करने की
कीमत अपनी जान चूका कर मुझ को देनी होगी
मुझ को तो अशुद्ध होने की सजा मिली है
अब तुम कितने शुद्ध रहे यह दुनिआ को बतानी होगी !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ