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8 Dec 2016 · 1 min read

मिजाज़-ए-मौसम कुछ पल में बदल जाता है..

मिजाज़-ए-मौसम कुछ पल में बदल जाता है
फूल खिलता है महकता है बिखर जाता है

मंज़िल यक़ीनन पाएगा वो शख़्स अच्छा है
अच्छा ये है कि गिरता है संभल जाता है

आँधियाँ गुज़री कभी तूफ़ां से मुक़ाबिल था
पेड़ इसलिये खड़ा है के लचक जाता है

पीते बहुत हैं लोग छिपाते भी बहुत हैं
मगर आँखों का पानी है छलक जाता है

है अमानत खुदा की खुदाई तेरी नहीं
यूँ जिंदगी का धागा और उलझ जाता है

दर्द पाता है चैन खोता है इंसां यूँ कि
नादां है बहुत कुछ खुद को समझ जाता है

तू कहाँ के लिये गठरिया बाँध बैठी ‘सरु’
कब ये ज़मीं चली है कहाँ फलक जाता है

1 Like · 1 Comment · 331 Views
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