मा शारदा
मा शारदा
वीणा पाणि वरदायिनी
शान्त चिन्त ज्ञान दायिनी
तव चरणौ मम वन्दिता श्वेत पुष्पे आरुढा
सुर ताल जमा ,कर-ताल से अन्धकार हर भाल से
मेरे शब्दो मे हो सिध्द तुम श्वेत गोल कपाल में
नीर बसा तुम मंन में मेरे, पीर जगा तु गीत में मेरे
सुरो का हो तुम सरगम’ पन्नो की पंक्ति का हो तुम पनघट
हे ब्रह्मा सहचारिणी ! कलम पर विराजिनी ।
पोथी खोल किस्मत की मेरी, तेरी संगत से छ्द्म रुप धारिणी
ध्वल तेरा आंगन हो, पताखा ध्वल पर गगन हो
हे शान्त चित्त धारिणी । अज्ञान चित्त हारिणी
गुण-गान कर देव-मुनि संग, मानव मन का धाम हो
प्रणय प्रीत प्रमाण बन, प्रणाम चरणो का नाम हो
सप्त सुरो की, त्रप्त तुलो की, कल्प कुलो की
पवित्रता संग तेरा नाता आला हो तुम स्वेत फुलो की ।
सुन विनती ध्वल वर्ण धारिणी ।
शिक्षा का हैं तु अधिकार अनोखा
वन्दन कर तेरा आज या उपकार अनोखा
कलाकार की कलम नोक पर
गीतकार की गीत गोर कर
सदा ज्ञान से अज्ञानता को हर कर
अमिट प्रकाश का पाव धरा छोड़ कर
दोर थमा उस दौर में ज्ञान घटा से शोर कर
अज्ञानता का दीप अप्रज्वलित किया ।
रावण के शिव ताण्डव मे.
कुरुक्षेत्र के हर पाण्डव मे
झलक अपनी बिखेर कर ,जीत पर हक धरा था
आशा, लता ,वर्मन, किशोर के कंठ पर अनोखा प्रणय था।
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होमी, कलाम, द्रोण की ही तु खोज थी
लक्ष्मी संग नाता रख अम्बानी की ही तु मोज थी
समानता रख तुने दिया ज्ञान का प्रसाद था
शान्त चिन्त सन्तुष्ट रहा अज्ञान का प्रमाद था