माहिये(होली)
होली आई मनभावन
कैसे खेलेंगे
रूठे रूठे हैं साजन
उड़ा खूब गुलाल अबीर
प्यार भरी होली
चले नज़रों के भी तीर
मारी भर भर पिचकारी
होली आई रे
खिली मन की फुलवारी
रंग बिखरे फागुन के
फूल उगाये हैं
कुदरत ने भी चुन चुन के
होली का बहाना था
मिलना था उनसे
और रंग लगाना था
दिल की कली यूँ चटकी
छोड़ दी लाज शर्म
चुनरी सर से सरकी
दिल तोड़ दिया तुमने
जीना मुश्किल है
क्यों छोड़ दिया तुमने
तुझे भूल न पायेंगे
यादें हैं तेरी
उन्हें रंग लगायेंगे
बड़े धोखे खाये थे
तेरी फितरत है
हम समझ न पाये थे
16-03-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद