माहिया
माहिया
अपना होता प्यारा
चाहे जैसा भी
फिर भी वह है तारा।
मनमोहक मानव है
दिल होता जिसका
निर्मल स्वच्छ धवल है।
जो हरियाली लाता
अपनी बातों से
सबको खुश कर जाता।
जो शीतलता लाता
वह पावन सरिता
जैसा बहता जाता ।
गुटबंदी से जो जन
प्रेम नहीं रखता
वह है अति प्रिय सज्जन।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।