मास्टर जी – कहानी
शहर के बीचों बीच स्थित सरकारी स्कूल में पवन अग्रवाल जी अध्यापक के पद पर कार्यरत थे | वहीं शहर के एस डी एम प्रेमलाल का बेटा भी न चाहते हुए इसी स्कूल में अध्ययन कर रहा था | बेटे का नाम रोहित था | एस डी एम प्रेमलाल का बेटा रोहित अपनी ओर से पूरी कोशिश कर चुका था कि उसे शहर के ही किसी कान्वेंट स्कूल में पढ़ाया जाए किन्तु न तो रोहित और न ही उसकी माँ की कोई कोशिश कामयाब हुई | एस डी एम प्रेमलाल ने उसे सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलवा दिया | रोहित को अपने पिता के उच्च पद पर आसीन होने का गुमान था जबकि दूसरी ओर मास्टर पवन अग्रवाल जी का लगभग सभी बच्चों के प्रति स्नेहपूर्ण व्यवहार था | रोहित को सबसे पहले जिस बात से रोष था वह था कि इस स्कूल के टीचर उतने अच्छे कपड़े नहीं पहनते थे दूसरी ओर इस स्कूल में वो सभी को अपने से नीचा समझता था | इसीलिए किसी के साथ उसकी बनती नहीं थी | कभी – कभी पवन अग्रवाल जी रोहित के घर उसके पिता से मिलने आते तो रोहित के पिता अग्रवाल जी के पैर छूकर आशीर्वाद लेते जो रोहित को अच्छा नहीं लगता | रोहित के पिता का मास्टरजी के साथ हंसकर बात करना भी रोहित को पसंद नहीं था |
रोहित अपनी कक्षा के सभी बच्चों से दूर अलग बेंच पर बैठा करता था | और अपना भोजन अकेले किया करता था | स्कूल के नल का पानी भी वह नहीं पीता था | उसे न तो किसी का सम्मान करना आता था और न ही वह किसी का सम्मान किया करता था | जबकि रोहित के पिता समय – समय पर इस स्कूल आकर स्कूल की बेहतरी के लिए अपनी ओर से और सरकारी मदद से काम करवा दिया करते थे ताकि स्कूल के बच्चों को कोई परेशानी न हो | स्कूल के विशेष अवसर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में रोहित के पिता को सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया जाता था | जैसे 26 जनवरी , 15 अगस्त, वार्षिक उत्सव, वार्षिक खेलकूद आदि अवसरों पर | प्रत्येक अवसर पर रोहित के पिता प्रेमलाल जी स्कूल को अपनी ओर से उपहार दे जाया करते थे | रोहित को अपने पिता का बार – बार स्कूल आना अच्छा नहीं लगता था और स्कूल को जो उपहार दिए जाते थे उसे भी वह फिजूलखर्ची समझता था | पर उसे एक बात का गर्व था कि जब भी उसके पिता स्कूल आते सभी शिक्षक उसके पिता के सम्मान में हाथ जोड़कर खड़े हो जाया करते थे | धीरे – धीरे रोहित का घमंड बढ़ने लगता है | और वह शरारती होने लगता है | किसी बच्चे के साथ मारपीट तो किसी टीचर के बारे में ऊलजलूल बकना |
एक दिन गुस्से में आकर रोहित अपनी ही कक्षा के एक बच्चे का सिर फोड़ देता है | टीचर उस बच्चे को अस्पताल ले जाते हैं | बच्चे के सिर पर पांच टाँके लगते हैं | यह बात स्कूल के सभी बच्चों में फ़ैल जाती है | रोहित इस घटना के बारे में अपने घर पर किसी को कुछ नहीं बताता | अगले दिन प्रेमलाल जी के दफ्तर का चपरासी स्कूल में हुई घटना के बारे में बताता है | चपरासी का बेटा भी उसी स्कूल में पढता था सो उसने घटना के बारे में अपने पिता को सब कुछ बता दिया था | प्रेमलाल जी तुरंत उस बच्चे से मिलने उसके पास उसके घर जाते हैं और उस बच्चे के माता – पिता को आर्थिक मदद के साथ फलों की टोकरी भी देकर आते हैं | शाम को प्रेमलाल जी अपने बेटे रोहित से बातों – बातों में स्कूल के बारे में पूछते हैं और मास्टर पवन अग्रवाल जी के बारे में भी पूछते हैं | रोहित टेढ़ा सा मुंह बना लेता है | और कहता है कि पापा अपने मुझे वहां सड़े से टीचरों के बीच फंसा दिया है | रोहित के इतना कहते ही रोहित के गाल पर एक जोर का तमाचा पड़ता है और वह एक ओर जा गिरता है | उसके पिता उसे उठाकर बताते हैं कि जिन टीचरों को तुम सड़े टीचर कह रहे हो मैं उनके द्वारा दी गयी आर्थिक सहायता और मार्गदर्शन के दम पर ही आज मैं एस डी एम बन पाया हूँ | मैं भी उसी स्कूल से पढ़कर आज इस पद पर आसीन हूँ | तुम्हारे टीचर श्री पवन अग्रवाल जी ने न जाने कितने बच्चों की आर्थिक मदद की है और उनका मार्गदर्शन भी | और तुम उस स्कूल को खराब और गन्दा कह रहे हो | तुम्हें मालूम होना चाहिए कि आदमी अपने कपड़ों से नहीं जाना जाता | उसके द्वारा किये गए उत्तम कार्यों से उसकी पहचान होती है | मेरे माता – पिता की इतनी हैसियत नहीं थी कि वे मुझे किसी अच्छे से स्कूल में पढ़ा पाते | मैं तुम्हारे इसी सरकारी स्कूल के शिक्षकों का ऋणी हूँ और आजीवन रहूँगा | और हाँ जिस बच्चे का सिर तुमने फोड़ा था उसके माता – पिता तो तुम्हारी पुलिस में शिकायत करना चाहते थे और तुम्हें बाल सुधारालय भिजवाना चाहते थे | पर मैंने तुम्हारे लिए उसने माफ़ी मांगी |
रोहित को एक तमाचे और पिता द्वारा दी गयी सीख से शिक्षक की महिमा का ज्ञान हो गया | रोहित अपने पिता के पैरों में पड़ गया और माफ़ी मांगने लगा | और आगे से किसी का भी अपमान न करने का वादा किया और सभी बच्चों के साथ मिलकर रहने का प्रण भी किया |