मास्क समझ पैदा नहीं करता
एक आदमी मेरे क्लीनिक पर एक मास्क लेने आया,
मैंने पूछा,
किस रंग का दूं
शायद उस आदमी को,
जानकारी नहीं थी,
उसके लिए,
महज,
एक पसंद खड़ी हो गई,
खैर,
उसने कहा,
नीले रंग का,
मैंने कहा,
मास्क,
रंग की वजह से सुरक्षा नहीं करता,
वह समझने में,
असमर्थ था,
.
उसने मेरी तरफ,
सौ रूपये का नोट किया,
मैंने कहा,
कोई बात नहीं,
आपके पास खुले पैसे नहीं हैं,
आप ऐसे ही ले जाओ,
मेरे मस्तिष्क में,
चल रहा था,
ये मुफ्तिया है,
ऐसे ही ले जाने को,
फिर कहा,
.
वह व्यक्ति राष्ट्रीय मार्ग 48 पर गाडी तक गया, और दस का नोट ले आया,
मैंने एक मास्क सफेद रंग और उसके हाथ में थमा कर,
दस रूपये रख लिए,
.
शहर में चौथे/पासिंग रोड/अप्रोच सड़क अक्सर, पार्किंग के कारण और जीर्ण शीर्ण हालात के कारण,
उसे असुविधा हुई,
और तेज गति से आती मोटरसाईकिल और कार उसके पैरों के बहुत करीब आकर रुकी,
.
मैं हतपरस्त और भौचक्का,
उस और देख रहा था,
वे लोग तो गाडी में बैठ कर चले गये,
मेरे मस्तिष्क में ढ़ेरों प्रश्न छोड़ गये,
उन्हें अभी टोल टैक्स भी अदा करना था,
.
गाडी में तेल भी पड़ौसी देशों से अधिक अदा करना है,
सड़क किनारे खडे बड़े बड़े हॉर्डिंग,
सरकार के कामों की तरफदारी,
कर उनके शासन को बेहतरीन साबित कर रहे है,
.
खैर आदमी,
खुद के जीवन के प्रति,
सजग है,
वह आयोजन के चक्रव्यूह से नहीं,
.
मास्क बाहरी, धूल/मिट्टी/पोलनग्रेन से तो बचा सकते है,
लेकिन लोगों द्वारा और सरकारी व्यवस्था के प्रति भी आपको सजग रहना है.
वर्तमान में आप,
अपने जीवन की सुरक्षा और प्रबंधन के स्वयं जिम्मेदार है,
हमें मुफ्त कुछ नहीं चाहिए,
लेकिन सबकुछ देकर और समय पर अदायगी से भी कुछ न मिले तो.
सब आयोजन.
व्यर्थ है.
देशहित/राष्ट्रवाद ढकोसले.
बोल भारत माता की जय.
जय श्रीराम
हर हर महादेव ही,
तुष्टिकरण के केंद्र रहेंगे.
महेन्द्र भारतीय