मासूम जिन्दगी
??॥ मासूम जिन्दगी ॥??
सोचता हूँ कब से जिन्दगी को खुली किताब बनाऊं,
जो अर्द्धलिखित मुड़े पन्ने है उसे सामने तो लाऊं ।
जब थरथराते हाथ से संभाला था कलम को,
उस अपाठ्य लेखनी को अब तो पाठ्य बनाऊं।
दिल के सुर्ख दिवारों को जिसे पन्ना बनाया था,
उसपर छपे बेताब कहानी से अब तो पर्दे उठाऊँ।
कबतक छुपाऊं कुछ कालिख पुते पन्नों को,
सबको अपने किये कारनामे भी तो बताऊँ।
सीधी कलम की सरसराहट से जिस मुकाम पर हूँ मैं,
उसे सोच-सोचकर अब तो थोड़ा इतराऊं।
ख्वाब भरे कुछ पन्ने निंद में ही लिखा था मैने,
अब होश आया मुझे,उस मासूम ख्वाब को तो सजाऊं।
घसीट लेखन सी कट रही अब जिन्दगी,
इस नासमझ जीवन को अब तो सुलझाऊं।
@TheChaand.