मासूमों की मौत
औकात गरीब की कोड़ी के दाम हो गयी है
संवेदना आज इंसान की नीलाम हो गयी है
कब्र से कम नहीं रह गए सरकारी अस्पताल
बिना ऑक्सीजन मासूमों की मौत हो गयी है
अड़सठ लाख के लिए रोक दी साँसे पचास
ठोकरों में आम आदमी की जान हो गयी है
उम्मीद लगाए बैठे थे गूंजेंगी किलकारियाँ
चर्चित बेबसों की अधखुली आँखे हो गयी है
एक बार जरा उस घर में भी झाँक लो यारो
वीरान जिनकी पल में सारी दुनिया हो गयी है
जाने कब फुरसत मिलेगी दुश्मनी से लोगों को
नेकदिली जिनके दिलों से रुखसत हो गयी है
औकात गरीब की कोड़ी के दाम हो गयी है
संवेदना आज इंसान की नीलाम हो गयी है